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कनाडा व भारत के बीच जबरदस्त तनाव से करोड़ों की एजुकेशन इंडस्ट्री पर खतरा, कनाडा में गए बच्चों के अभिभावकों की चिंता बढ़ी

कनाडा व भारत के बीच जबरदस्त तनाव से जहां उन अभिभावकों की चिंता बढ़ गई है जिनके बच्चे कनाडा में स्टडी या वर्क वीजा पर हैं वहीं हजारों करोड़ रुपये की विदेशी एजुकेशन इंडस्ट्री को भी झटका लग सकता है। कनाडा में जनवरी सेशन के लिए विद्यार्थियों की तैयारियां आखिरी चरण में हैं, ऐसे में उनको अपने भविष्य की चिंता सताने लगी है।

इसके साथ ही विदेशी एजुकेशन इंडस्ट्री भी सकते में है। कनाडाई सीमा सुरक्षा एजेंसी ने 700 युवाओं को डिपोर्ट करने का नोटिस दे रखा है, जिन युवाओं के ऑफर लेटर फर्जी थे, वह मामला भी लटक रहा है।

पंजाब से सबसे ज्यादा युवा कनाडा ही जाते हैं, इसकी सबसे बड़ी वजह कनाडा की उदार नीतियां हैं, क्योंकि कनाडा की नागरिकता लेना सबसे ज्यादा आसान है। कनाडा में वैंकुवर, ब्रैप्टन, मिसीसागा जैसे 20 से ज्यादा शहर ऐसे हैं जहां हर चौथा शख्स पंजाबी है।

यहां के नागरिकता नियमों की बात करें तो कनाडा में पांच साल तक अप्रवासी के तौर पर रहने वाला शख्स वहां की नागरिकता के लिए अप्लाई कर सकता है, इस अवधि में उसे कम से कम तीन साल तक लगातार देश में रहना होगा।

पंजाब से कनाडा जाने वाले युवाओं में सबसे ज्यादा वे छात्र होते हैं जो 12 वीं के बाद ही वहां जाना चाहते हैं। कनाडा में जाने से फायदा यह है कि वहां पर छात्रों को पढ़ाई के साथ-साथ पार्ट टाइम जॉब का प्रति सप्ताह 20 घंटे का ऑप्शन भी दिया जाता है। 2021 के मुकाबले 2022 में विदेश में पढ़ाई के लिए जाने वालों की संख्या में 68 फीसदी तक बढ़ोतरी हुई है।

2021 में भारत से 4,44,553 छात्र विदेश पढ़ाई के लिए गए थे, जबकि 2022 में यह आंकड़ा बढ़कर 7,50,365 हो गया। 2020 में कोरोना की वजह से बाहर जाने वाले छात्रों के आंकड़ें में गिरावट आई थी, लेकिन उस साल भी तकरीबन 259655 छात्र पढ़ाई के लिए विदेश गए थे। इनमें 40 फीसदी विद्यार्थी कनाडा का रुख करते हैं और इनमें पंजाब अव्वल है।

कनाडा में हाल ही में पीआर लेने वाले सिद्धार्थ भोला के पिता रोहित का कहना है कि उनका बेटा कैलगरी में है और इन बिगड़ते रिश्तों से उनके परिवार की चिंता बढ़ना स्वभाविक है। जिस तरह की खबरें आ रही हैं वह चिंताजनक है। कनाडा में स्टडी के लिए प्रज्जवल मल्होत्रा का कहना है कि भारत व कनाडा के बीच तनाव से भारतीय विद्यार्थियों में काफी चिंता बढ़ गई है। जिस तरह से दोनों देश एक दूसरे के राजनयिक को वापस भेज रहे हैं उससे भारतीय मूल के विद्यार्थी तनाव में हैं।

 

वहीं स्टडी एजुकेशन इंडस्ट्री में एयर कारपोरेट के एमडी रमन कुमार का कहना है कि यह चिंता का विषय है और इसका विदेशी एजुकेशन इंडस्ट्री पर प्रभाव पड़ना तय है। अभी तक कनाडा की तरफ से स्टडी वीजा में काफी उदार नीति अपनाई जा रही थी। तनाव का असर वीजा पर होना तय है। बाकी जो विद्यार्थी कनाडा जाने की तैयारी में लग गए थे, उनके कदम भी रुक गए हैं। त्रिवेदी ओवरसीज के सुकांत त्रिवेदी का कहना है कि निश्चित तौर पर इसमें कोई शंका नहीं कि कनाडा पंजाबी युवाओं की पहली पसंद हैं, लेकिन अब काफी फर्क पड़ने जा रहा है।

 

कनाडा में सिखों का बोलबाला, इसलिए पंजाबी पहली पसंद..

कनाडा के पूर्व सांसद रमेश संघा का कहना है कि 2021 की एक स्टडी के अनुसान कनाडा में पंजाबियों की गिनती 2.6 फीसदी है और 9.50 लाख सिख व पंजाबी बस रहे हैं। जिनमें 7.70 लाख पंजाबी हैं। 2021 के चुनाव परिणामों की बात करें तो 17 सीटें ऐसी थी, जिन पर भारतीय जीते। इन 17 सांसदों में से 16 पंजाबी थे। 338 सीटों पर 49 भारतीय मैदान में उतरे थे। जिनमें तकरीबन 35 कैंडिडेट पंजाब के थे। ओंटारियों में 8 सांसद पंजाबी हैं, जबकि ब्रिटिश कोलंबिया से 4, अल्बर्टा से 3 और क्यूबिक से एक सीट पर कब्जा किया। कनाडा में आम चुनाव में ट्रूडो बड़ी मुश्किल से जीत सके थे।

 

जीतने के बाद भी वह सरकार बनाने में असफल थे। ट्रूडो की लिबरल पार्टी ऑफ कनाडा को 157 सीटें मिलीं थी, जबकि विपक्ष की कंजरवेटिव पार्टी को 121 सीटें हासिल हुई थीं। सरकार बनाने के लिए ट्रूडो को 170 सीटें चाहिए। ये सीटें और पीएम की कुर्सी अगर उन्हें कोई दिला सकता था, तो वह थी जगमीत सिंह वाली न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी जिसे 24 सीटें मिली थीं। इन सीटों के साथ ही जगमीत सिंह कनाडा में बिल्कुल हीरो से बन गए थे। यह किसी से छिपा नहीं है कि जगमीत, खालिस्तान आंदोलन के बड़े समर्थक हैं। चुनाव के बाद सिंह और ट्रूडो ने कॉन्फिडेंस-एंड-सप्लाई एग्रीमेंट को साइन किया था। यह समझौता 2025 तक लागू रहेगा। अब तक जगमीत सिंह, ट्रूडो के भरोसेमंद साझेदार बने हुए हैं।

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