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Punjab Vigilance आयोग भंग: भ्रष्टाचार रोकने के लिए कैप्टन सरकार ने बनाया था, मान बोले-खजाने पर बोझ था

पंजाब की कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार के कार्यकाल में गठित पंजाब राज्य विजिलेंस आयोग को आप सरकार ने भंग कर दिया है। विधानसभा के विशेष सत्र के तीसरे दिन प्रस्ताव पेश करते हुए मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि आयोग अपनी प्राथमिकताओं को पूरा करने में विफल रहा है और इस कारण यह खजाने पर बोझ बन गया है।

शुक्रवार को विधानसभा में सर्वसम्मति से आयोग की शक्तियों को रद्द करने संबंधी बिल शुक्रवार को पारित कर दिया गया। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि पंजाब राज्य विजिलेंस आयोग का मुख्य कार्य भ्रष्टाचार की रोकथाम, अपराध में संलिप्त लोक सेवकों की जांच का जिम्मा था। विजिलेंस ब्यूरो और पुलिस की कार्यप्रणाली पर नजर रख्रना भी आयोग की प्राथमिकताओं में शामिल था। इन सभी कार्यों में आयोग विफल रहा है।

सीएम ने कहा कि दूसरे राज्य में ऐसे हितधारकों के समूह से निपटने के लिए विजिलेंस विभाग के अलावा और भी कई एजेंसियां सक्रिय हैं। पंजाब राज्य विजिलेंस आयोग एक्ट 13 नवंबर, 2020 को लागू हुआ था। इस एक्ट के अंतर्गत बनाए गए पंजाब राज्य विजिलेंस कमीशन ने जरूरी उददेश्य प्राप्त नहीं किए। लिहाजा यह फैसला राज्य के निवासियों के व्यापक हित में लिया गया है।

 

दो बार हो चुका है सतर्कता आयोग का गठन

पंजाब में सतर्कता आयोग का गठन दो बार किया जा चुका है। सबसे पहले 2002 में कैप्टन अमरिंदर सिंह के कार्यकाल के दौरान विधानसभा ने मुख्य निदेशक, सतर्कता ब्यूरो के तहत सतर्कता आयोग की स्थापना के लिए एक विधेयक पारित किया था। इसके कुल 11 सदस्य बनाए गए। वर्ष 2007 में जब शिरोमणि अकाली दल भाजपा के साथ मिलकर सत्ता में आया, तो उसे भंग कर दिया गया।

2020 में कैप्टन ने फिर दिखाया दम

2020 में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने फिर से विजिलेंस कमीशन के गठन के लिए बिल पेश करने का प्रस्ताव रखा। इसके बाद पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के पूर्व कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति मेहताब सिंह गिल को पंजाब राज्य का मुख्य सतर्कता आयुक्त नियुक्त किया गया है। आप सरकार सत्ता में आते ही आयोग के सदस्यों की संख्या 11 से घटाकर पांच कर चुकी है।

इसलिए आयोग पर चली कैंची

अब पंजाब में आप सरकार बनने के बाद आयोग की कार्यप्रणाली को लेकर पहले से ही सरकार के पास काफी इनपुट था। इस इनपुट के आधार पर सरकार ने आयोग के ऊपर होने वाले सालाना खर्च का ब्योरा मंगवाया और कामकाज की रिपोर्ट देखी। जिसे देखने के बाद यह निर्णय लिया गया कि आयोग सरकार के लिए सफेद हाथी साबित हो रहा है। खर्चा कम करने में जुटी सरकार ने आज आयोग के ऊपर भी कैंची चला दी।

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