
खत्म हुआ अमृतसर का प्रसिद्ध लंगूर मेला: चोला उतारकर घरों को लौटे बच्चे, 10 दिन लोगों ने सात्विक जीवन व्यतीत किया
पहले नवरात्रि पर जिस जोश व खुशियों के साथ लंगूर मेले की शुरुआत हुई थी, उसी उल्लास के साथ इसका समापन भी हुआ। 10 दिनों तक सात्विक जीवन जीने के बाद लंगूर बने बच्चों ने अपने चोले उतार दिए और हंसी-खुशी घरों की तरफ निकल गए। दुर्ग्याणा मंदिर में बने बड़े हनुमान मंदिर में सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ लगी दिखी। लंगूर चोले में सजे बच्चे आ तो रहे थे, लेकिन स्नान व पाठ के बाद गले में फूल की मालाएं डाले वापस भी जा रहे थे।
जिन माता-पिता ने संतान प्राप्ति के लिए अरदास कर रखी थी, वह पूरी होने के बाद वे 10 दिन तक सात्विक व साधारण जीवन जीते रहे। बच्चे ने तो वानर रूप धारण किया ही था, लेकिन उसके साथ माता-पिता ने भी पूरी तरह से सात्विक जीवन अपनाया। फलाहार खाया और 10 दिनाें तक नंगे पांव रहे। जमीन पर सोने जैसे कठोर नियम का पालन किया। दशमी की सुबह बच्चों ने दुर्ग्याणा मंदिर के सरोवर में स्नान किया और उसके बाद बड़े हनुमान मंदिर में नतमस्तक होने के बाद अपना चोला उस वृक्ष के पास बैठे पंडित को सौंप दिया, जहां लव-कुश ने हनुमान जी को बांध दिया था।
मान्यता: मन्नत मांगने से भरती है सूनी गोद
मान्यता है कि जो कोई भी इस हनुमान मंदिर में संतान सुख की मन्नत मांगता है, वह पूरी हो जाती है। मन्नत पूरी होने पर वह व्यक्ति मेले में लंगूर का बाना पहनकर हर रोज सुबह-शाम मत्था टेकने के लिए आता है। बच्चों को भी लंगूर बनाकर लाते हैं।
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